Wednesday, August 3, 2011

आखिर ऐसा क्यूँ है ??????

रब्बा,
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है, 
कहीं ज़ख्मो पे मरहम कहीं पीठ में खंजर क्यूँ है ??

सुना है के तू हर ज़र्रे में है रहता,
तो फिर इस ज़मीं पे कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है ?

जब रहने वाले इस दुनिया के हैं तेरे ही बन्दे,
तो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई दुश्मन क्यूँ है?

जब नहीं नकार सकी है दुनिया तेरे इस वजूद को,
तेरे होने से फिर कहीं पकी फसल तो कहीं ज़मीं बंजर क्यूँ है?

कहते हैं की तू बनाता है लोगों का मुक़द्दर,
 तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यूँ है?

आखिर ऐसा क्यूँ है???


मोहन गोडबोले:
( अन्तरिक्ष भाई के मेसेज से साभार अवतरित ) 

1 comment:

  1. नमस्ते।

    आपकी ये खुबसुरत कविता https://www.facebook.com/groups/hindikavitayen/ फेसबुक के हिंदी कविता समूह में पढ़ी। बेहद पसंद आयी। आपसे अनुरोध है के आप वहाँ पधारे और अपनी कविताएँ प्रस्तुत करें।

    तुषार

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