कभी आग दिल में उतर गई
कभी दर्द मुझमे समां गए
कुछ आरज़ू मेरी जल गई
जो बचा था कुछ, वो अशार थे
तेरी बज्म में तो न आ सके
जो तेरे आशिक-ओ - मुरीद थे
तेरी रह गुजर में ही रह गए
जो भी चलने को तैयार थे
तेरे संग बीते थे जो लम्हे
मुझे धुंधले धुंधले से याद हैं
ये धुआं धुआं सा हर शजर
है ये जिंदगी या ख्याल है
साहिल १ /३/२०१३