हकीक़त में ना सही तू ख्याल बन के मिल
जवाबों में ना सही तू सवाल बन के मिल
हैं तीरगी में गर जो निगाहों के दायरे
जलती हुई ख्वाबों की तू मशाल बन के मिल ,
मुरझाये गुलाबों में फिर आ जाएगी रौनक
सजधज के फरिश्तों सी तू कमाल बन के मिल
देखें तुझे जो फिर न वो नज़रें हटा सके
जलवा-ऐ-हुस्न इतनी तू बेमिसाल बन के मिल
बे-रंग फलक जिंदगी का यूँ सँवार दे
अबीर बन के मिल कभी तू गुलाल बन के मिल
"साहिल" से जो मिलना है तो तन्हाई चाहिए
उठता हुआ लहरों का तू बवाल बन के मिल
मोहन गोडबोले(साहिल)- २/१०/१३