मैंने फ़िर शाम सजाई है, हमेशा की तरह
दिल ने फिर लीअंगड़ाई है , हमेशा की तरह
चाँद निकला ही नहीं है फलक पर, आज भी,
जाने कैसी ये रुसवाई है , हमेशा की तरह,
न कोई रब्त है न सिलसिला है कोई अब तो
फिर तेरी याद क्यूँ ये आई है , हमेशा की तरह
ये जुल्फों की घनी छाँव है या के अँधेरे की छुअन
कितनी गहरी ये परछाई है, हमेशा की तरह
वो आयेगी ये सोच कर जाम न उठाये मैंने
मैक़दे ने फिर दी दुहाई है, हमेशा की तरह
कमज़ोर हंसी लबों पर और निगाहें नम हैं
कौन सी बात ये तुमने छुपाई है, हमेशा की तरह
कुछ खास नहीं बात बस इतनी सी है "साहिल ",
के रात भर नींद न आई है , हमेशा की तरह
-- मोहन गोडबोले साहिल २३/९/२०१३