मेरे अल्फाजों को बंदिश में, सजाने के लिए
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए
बुझे बुझे से थे मेरे दिल में, जो बरसों बरस
ऐसे अरमानों को फिर आग लगाने के लिए
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए
तुझमे मुझमे कभी पा न सके,जो मंजिल अपनी
ऐसे जज्बात को सही राह, दिखाने के लिए
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए
जश्न-ऐ-रुसवाई की महफ़िल के किसी कोने में
मेरे आगाज़ को अंजाम तक, लाने के लिए
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए
मेरे अल्फाजों को बंदिश में, सजाने के लिए
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए
मोहन गोडबोले(साहिल)- 7/1/13