Tuesday, March 22, 2016

कभी यूँ ही तुमसे मिलता हूँ Series- भाग ३

"संदली के जंगल "  से आगे  .  . . . . . 

हल्की हल्की कुछ बूंदें , सूरज की नज़र बचाकर 
सदाबहार के पत्तों की ओट से,
मेरे हाथ पर आकर मुस्कुराने लगीं थीं ,
उनका असली रंग जो उन्हें मिल गया था,
मेरे हाथों में लगी स्याही का रंग, 

वो स्याही जो तुम्हारे गीत लिखते वक़्त 
रह गई थी मेरी उँगलियों पर , और 
जिसके चेहरे पर तुम्हारे नाम की 
महक आज भी ज़िंदा थी 

और जो वादी में बिखरी हुई 
तुहारी जुल्फों की खुशबू में मिलकर 
मंद मंद हिलोरे ले रही थी 

सारा आलम मानों तुम्हारे ही 
नशे में गुम था ,

मैंने बूंदों से इसका राज़ पूछा 
तो उन्होंने मुस्कुराकर ऊपर 
बादलों की तरफ इशारा कर दिया 
 
अविरत   ,.... .... 
20/11/14

कभी यूँ ही तुमसे मिलता हूँ Series- भाग २


संदली के जंगल.......

इक रोज़ की बात है,
मैं सुनहरी पर्वत की घाटी की तरफ 
बढ़ता चला जा रहा था, सुबह
तुम्हारी यादों के जो गीत बने थे,
उन्हें गुनगुनाता चला जा रहा था 

संदली की जंगल से गुज़रते वक़्त ,
नीली नदी के चमकीले पानी पर-
मानो एक तस्वीर सी उभर रही थी   .... 
"तुम्हारी" वो तस्वीर जिसका जिक़्र,
मैं तुमसे करने आया था उस रोज़ 

वही तस्वीर जो मैंने बादल के छोटे 
टुकड़े पर शब्दों से उकेर दी थी , और 
जो तुम तक पहुँच ही नहीं पायी, शायद

नदी किनारे फूलों में भी वही खुशबू थी,
जिसका मखमली एहसास,
उन मोगरे की कलियों में उतर चुका था,
और गुलाबों की पंखुड़ियाँ भी तो,तुम्हारे 
शर्मीले गालों का लाल रंग चुरा चुकीं थीं,

मैं अब भी हैरान था की,
जो बात इन सबों से छुपकर,
दूर गगन के पार क्षितिज पर,
तुम्हारे घर के बाहर छोड़ी थी,
आख़िर,

आख़िर- ....... 
इन तक ये पहुंची कैसे ?
 
ये सोचते सोचते मेरे पैर थमे ही थे 
की अचानक बूंदों ने मेरा ध्यान बँटाया- .......... 

अविरत ................

मोहन गोडबोले " साहिल" - २२/१०/१४