Monday, February 20, 2012

रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई 
क़तरा कतरा भीग गया उजली बौछार में,
सुनहरी धूप की गर्माहट से खिल उठा ये मन 
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,

कैसी आज ये घडी आई है की हर तरफ जगमगाहट है .
धुंधली  शाम के आगोश में जुगनुओं की आहट है.
दूर उडती धुंध में ये गोधुली साकार हुई 
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,
रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई ......


रात के ओटलों पे चलती  चाँद की अठखेलियाँ,
टिमटिमाती झिलमिलाती सितारों की झालरें 
तेरे दीदार के इस्तकबाल में,मौसिकी यूँ  तैयार हुई
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,
रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई ....

मोहन गोडबोले (साहिल) - २०-२-२०१२