कभी सोचता हूँ की क्या हूँ मैं .......?
कभी सोचता हूँ की क्या हूँ मैं ,
बस इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ हूँ मैं,
कभी रिंद, कभी साक़ी कभी मयकदा हूँ ,
कभी बेफिक्रों की तरह उडता धुआं हूँ मैं,
कोई रिश्ता कोई बंधन कोई नाता हूँ ,
या ऐसी ही किसी डोर से बंधा हुआ हूँ मैं ,
कोई दे देता है खुश होकर या कोई देता है खफा होकर ,
शायद कोई दुआ या कोई बद्दुआ हूँ मैं ,
चमकना था मुझे जगमगाते सितारों की मानिंद ,
सूरज की रौशनी में ही धुंधला हुआ हूँ मैं..
कभी सोचता हूँ की क्या हूँ मैं ,
बस इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ हूँ मैं,
कभी सोचता हूँ की क्या हूँ मैं..................
मोहन गोडबोले (साहिल) :- २१/२/२०११