Wednesday, April 24, 2013

शायद चुनाव आ गया है,...

शहर की रगों में बहुत दबाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

चमचों की मूंछो पे अचानक बहुत ताव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

सरकारी बाशिंदों की पेशानी पे, बहुत तनाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

हुआ छतों से नदारद तिरंगा , साईकिल,पंखा और नाव आ गया है ,
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

चमचमाने लगी शहर की सड़कें और गड्ढों में भराव आ गया है,
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

बिजलियाँ पूरे समय मिल रहीं , सूखे नलों मे बहाव आ गया है .
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

बह रही दारू पानी की तरह, वोटरों को लुभाने का ये सुझाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

कल तक महंगी कारों में घुमने वाला, आज द्वारों पे नंगे पाँव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है, ॥अ॥

ईद होली दिवाली संग खेलते थे इन्सां, इन वोटों से मजहबी कटाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है, ॥ अ ॥

जब से पडोसी ने परचा भरा है , कुछ जियादा ही मुझसे लगाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,



देहरादून में आगामी नगर निकाय के चुनावों पर व्यंग्यात्मक कविता

मोहन गोडबोले ( साहिल) - २४/४/२०१३

Thursday, April 18, 2013

मैं अब ,"बड़ा" हो गया हूँ !



जिंदगी तेरे अजब मोड़ पे, आके खड़ा हो गया हूँ 
उम्र से पहले ही शायद, उम्र से "बड़ा "हो गया हूँ 

है उम्मीद की जाने लगी, मुझसे  बड़ों की तरह 
लगता है की सचमुच,  अब "बड़ा "हो गया हूँ   

मुझसे छोटे मेरी सुनते नहीं, बड़े सुनाने नहीं देते
कुछ बोलो तो कहते हैं, की नकचढ़ा हो गया हूँ 

है ये हकीक़त तो मुझको मेरे हाल पे रहने दो 
गिरते पड़ते सही अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ 

इल्म दुनिया की रवायत का आने लगा है मुझको 
न हो हैरान ऐसे की  मैं, अब "बड़ा" हो गया हूँ 

मोहन गोडबोले (साहिल)- १८/४/१३ 

Sunday, April 7, 2013


बहुत जुदा है औरों से, 
मेरे दर्द की कैफियत 
जख्म का कोई निशाँ नहीं, 
और दर्द की कोई इन्तेहाँ नहीं

Thursday, April 4, 2013

नज़र


दिल के मौसमों पे, अपनी नज़र कर दे ,
शबें रातरानी, दिन गुलमोहर कर दे ,

  सुबह गेंदे सी,वासंती दोपहर कर दे 
महकी महकी सी मेरी, शाम-ओ-सहर कर दे ,
बिखर जा मुझ पे , ओस की बूंदों की तरह,
मेरा दामन भिगो के, तर-बतर कर दे ,

अपने आगोश में ही , अब तो समा जाने दे ,
दीन-ओ-दुनिया से , मुझको बेखबर कर दे ,
 

मोहन गोडबोले( साहिल)
४/४/१३