Sunday, December 1, 2013

॥ शबे मालवा कि नज़र ॥


कहते हैं अवध की शाम का अंदाज़ है निराला 
मगर शबे-मालवा की बात ही कुछ और है.… 

हमने देखी हैं हर बड़े शहर की रौनकें  
मगर अपने इंदौर की बात ही कुछ और है 

दिन कि हसीं शुरुआत के लिए 
"पोहे" अगर मिल जाएँ तो फिर बात ही कुछ और हैं 

"सर जी","एक्सक्यूज़ मी" "हेलो हाय" तो हर जगह मौजूद हैं 
मगर "भिया राओम " की बात ही कुछ और है  

" जी हाँ", "हाँ जी ", "यस  सर " तो सब कहें 
 मगर इन्दोरी  "हओ"  कि बात कि कुछ और हैं 

कितने ही बड़े हों, बिकानो और हल्दीराम 
अपने शहर कि "सेंव" कि बात ही कुछ और है 

 जहाँ पूछने पर भी पता नहीं बताते कई लोग 
वहाँ घर तक छोड़ आये उस इंदौरी कि बात ही कुछ और है

कितने ही बड़े शायर और फ़नकार  हो कहीं 
 "राहत इंदौरी" कि मगर बात ही कुछ और है 

 होंगे हर शहर में कुछ खास मोहल्ले 
छप्पन और सराफा कि मगर बात ही कुछ और है 

पीकर के तो टल्ली  हो जाते ही हैं लोग  
मगर "माल तेज" हो जाये तो बात ही कुछ और है   

             मोहन गोडबोले- "साहिल -इंदौरी " 
              १/१२/२०१३      

Thursday, November 28, 2013

॥ संवेदना ॥

संवेदना की मृदु धरा पर
शब्द तुमने  बो दिए
ताल यह घोषित करेगा 
पद्य हो अपद्य हो ॥ १॥ 

मान हो अपमान हो
या  स्वाभिमान कि हो विजै 
काल यह घोषित  करेगा 
लज्ज  हो निर्लज्ज हो ||2|| 

राग हो अनुराग हो या
 प्रेम का छ्द्मावरण 
भाव यह घोषित  करेगा
 लिप्त हो निर्लिप्त हो ||3||

शूल होंगे मार्ग में या
 पुष्प का होगा सदन 
भाग्य यह घोषित करेगा
 युक्त हो निर्युक्त हो ||4||

अनंताविरत  ……
 
मोहन गोड़बोले "साहिल"
२८/११/२०१३ 

Monday, November 25, 2013

प्रथम त्रिवेणी



" पलकें बंद करता हूँ तो दर्द छलकता है 
  खुली रखता हूँ तो आँखों में चमकता है 
   दर्द है या साग़र  है खाली पैमानों से भी झलकता है 
 
                                                -मोहन गोडबोले"साहिल"( २४/११/१३)

Thursday, October 3, 2013


हकीक़त में ना सही तू ख्याल बन के मिल 
जवाबों  में ना सही तू सवाल बन के मिल 

हैं तीरगी में गर जो निगाहों  के दायरे
जलती हुई ख्वाबों की तू मशाल बन के मिल ,

मुरझाये गुलाबों में फिर आ जाएगी रौनक 
सजधज के फरिश्तों सी तू कमाल बन के मिल  

देखें तुझे जो फिर न वो नज़रें हटा सके 
जलवा-ऐ-हुस्न इतनी तू बेमिसाल बन के मिल 

बे-रंग फलक जिंदगी का यूँ सँवार दे 
अबीर बन के मिल कभी तू गुलाल बन के मिल 

"साहिल" से जो मिलना है तो तन्हाई चाहिए 
 उठता हुआ लहरों का तू बवाल बन के मिल 
 

                  मोहन गोडबोले(साहिल)- २/१०/१३ 
 

Friday, September 27, 2013

मैंने फ़िर शाम सजाई है, हमेशा की तरह

मैंने फ़िर शाम सजाई है, हमेशा की तरह
दिल ने फिर लीअंगड़ाई है , हमेशा की तरह

चाँद निकला ही नहीं है फलक पर, आज भी,
जाने कैसी ये रुसवाई है , हमेशा की तरह,

न कोई रब्त है न सिलसिला है कोई अब तो 
फिर तेरी याद क्यूँ ये आई है , हमेशा की तरह 

ये जुल्फों की घनी छाँव है या के अँधेरे की छुअन
कितनी गहरी ये परछाई है, हमेशा की तरह

वो आयेगी ये सोच कर जाम न उठाये मैंने 
मैक़दे ने फिर दी दुहाई है, हमेशा की तरह 

कमज़ोर हंसी लबों पर और निगाहें नम हैं
कौन सी बात ये तुमने छुपाई है, हमेशा की तरह

कुछ खास नहीं बात बस इतनी सी है "साहिल ",
के रात भर नींद न आई है , हमेशा की तरह

-- मोहन गोडबोले साहिल २३/९/२०१३

Monday, June 3, 2013

तू है तेरी आरजू भी है....

तू है तेरी आरजू भी है, 
और तेरी नज़र-ऐ-साकी है 
जिंदगी के गुजर जाने में,
बस दो चार पहर बाकी है 

ऐसे न चिल्मन से छुपाओ 
अपना हुस्न- ऐ -माहताब,
रात बाकि है अभी, 
और सहर बाकी  है 

- साहिल (४/६/१३)

Thursday, May 30, 2013

हर्फ़

मैं ख़ुली हुई सी किताब का 
छुपा  हुआ सा एक हर्फ़ हूँ 
ये मुड़ी हुई सी जो पर्त  है 
सरका  के इसको  तो देख ज़रा 
रुख से पर्दा हटा के तो देख ज़रा 
मुझसे नजरें मिला के तो  देख ज़रा 

हर्फ़ = शब्द

मोहन गोडबोले ( साहिल) - 29-5-13

Friday, May 3, 2013

"एक विचार- क्रन्तिकारी"



हमारी ख़ामोशी को हमारी कमजोरी न समझ 
हमारी सहिष्णुता को हमारी मजबूरी न समझ 
जिस दिन शमशीर उठा लेंगे 
कश्मीर तो क्या तुझसे लाहौर भी छुड़ा लेंगे 

मत भूल ऐ पडोसी मुल्क कि, 
सियासत में मुनासिब रवादारी
बखूबी हम समझते हैं 

हो लबों पर भले ही ख़ामोशी, 
पर हाथ हम भी ट्रिगर पर रखते हैं 

          साहिल- ( २/५/१३ )

Wednesday, April 24, 2013

शायद चुनाव आ गया है,...

शहर की रगों में बहुत दबाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

चमचों की मूंछो पे अचानक बहुत ताव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

सरकारी बाशिंदों की पेशानी पे, बहुत तनाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

हुआ छतों से नदारद तिरंगा , साईकिल,पंखा और नाव आ गया है ,
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

चमचमाने लगी शहर की सड़कें और गड्ढों में भराव आ गया है,
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

बिजलियाँ पूरे समय मिल रहीं , सूखे नलों मे बहाव आ गया है .
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

बह रही दारू पानी की तरह, वोटरों को लुभाने का ये सुझाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,

कल तक महंगी कारों में घुमने वाला, आज द्वारों पे नंगे पाँव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है, ॥अ॥

ईद होली दिवाली संग खेलते थे इन्सां, इन वोटों से मजहबी कटाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है, ॥ अ ॥

जब से पडोसी ने परचा भरा है , कुछ जियादा ही मुझसे लगाव आ गया है
लगता है शायद चुनाव आ गया है,



देहरादून में आगामी नगर निकाय के चुनावों पर व्यंग्यात्मक कविता

मोहन गोडबोले ( साहिल) - २४/४/२०१३

Thursday, April 18, 2013

मैं अब ,"बड़ा" हो गया हूँ !



जिंदगी तेरे अजब मोड़ पे, आके खड़ा हो गया हूँ 
उम्र से पहले ही शायद, उम्र से "बड़ा "हो गया हूँ 

है उम्मीद की जाने लगी, मुझसे  बड़ों की तरह 
लगता है की सचमुच,  अब "बड़ा "हो गया हूँ   

मुझसे छोटे मेरी सुनते नहीं, बड़े सुनाने नहीं देते
कुछ बोलो तो कहते हैं, की नकचढ़ा हो गया हूँ 

है ये हकीक़त तो मुझको मेरे हाल पे रहने दो 
गिरते पड़ते सही अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ 

इल्म दुनिया की रवायत का आने लगा है मुझको 
न हो हैरान ऐसे की  मैं, अब "बड़ा" हो गया हूँ 

मोहन गोडबोले (साहिल)- १८/४/१३ 

Sunday, April 7, 2013


बहुत जुदा है औरों से, 
मेरे दर्द की कैफियत 
जख्म का कोई निशाँ नहीं, 
और दर्द की कोई इन्तेहाँ नहीं

Thursday, April 4, 2013

नज़र


दिल के मौसमों पे, अपनी नज़र कर दे ,
शबें रातरानी, दिन गुलमोहर कर दे ,

  सुबह गेंदे सी,वासंती दोपहर कर दे 
महकी महकी सी मेरी, शाम-ओ-सहर कर दे ,
बिखर जा मुझ पे , ओस की बूंदों की तरह,
मेरा दामन भिगो के, तर-बतर कर दे ,

अपने आगोश में ही , अब तो समा जाने दे ,
दीन-ओ-दुनिया से , मुझको बेखबर कर दे ,
 

मोहन गोडबोले( साहिल)
४/४/१३


Monday, March 11, 2013


कभी आग दिल में उतर गई 
कभी दर्द मुझमे समां गए 
कुछ आरज़ू मेरी जल गई 
जो बचा था कुछ, वो अशार थे 

तेरी बज्म में तो न आ सके 
जो तेरे आशिक-ओ - मुरीद थे 
तेरी रह गुजर में ही रह गए 
जो भी चलने को तैयार थे 

तेरे संग बीते थे जो लम्हे 
मुझे धुंधले धुंधले से  याद हैं 
ये धुआं धुआं सा हर शजर 
है ये  जिंदगी या ख्याल है 

साहिल १ /३/२०१३ 

Saturday, February 9, 2013

मालव माटी के चरणों में अर्पित कुछ शब्द पुष्प-

हे मालव माटी तुझे नमन है
 तेरे चरणों में वंदन है 
रज तेरी  माथे पर लगाऊ
जैसे शीतल चन्दन है 
हे  मालव माटी तुझे नमन है
 तेरे चरणों में वंदन है


तेरी गोद में जन्मा हूँ तो 
आनंदित मेरा  हर क्षण है 
तेरे  आशीष से बना हुआ 
मेरे शरीर का हर एक कण है 
हे मालव माटी तुझे नमन है
 तेरे चरणों में वंदन है


मोहन गोडबोले ( साहिल)- 10-2-13

Sunday, January 6, 2013

लौट कर आजा


मेरे अल्फाजों को बंदिश में, सजाने के लिए 
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए 

बुझे बुझे से थे मेरे दिल में, जो बरसों बरस 
ऐसे अरमानों को फिर आग लगाने के लिए 
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए 

तुझमे मुझमे कभी पा न सके,जो मंजिल अपनी 
ऐसे जज्बात को सही राह, दिखाने  के लिए 
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए 

जश्न-ऐ-रुसवाई की महफ़िल के किसी कोने में 
मेरे आगाज़ को अंजाम तक, लाने के लिए 
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए 

मेरे अल्फाजों को बंदिश में, सजाने के लिए 
लौट कर आजा एक बार, ज़माने के लिए 

मोहन गोडबोले(साहिल)- 7/1/13