Wednesday, September 13, 2023

"चुप्पी"

दुनिया में सबसे ख़तरनाक कोई चीज़ है, तो वो है एक दुःख में भरी महिला की "चुप्पी "। मानव इतिहास में जो सबसे विध्वंसकारी चीज़ बनी है वो है एटम बम, मगर उससे भी विध्वंसकारी चीज़ है "चुप्पी"। वो "चुप्पी" जो हज़ारों सवालों को बोलता कर देती है। आप समस्त दुनिया के किसी कोने में चले जाएँ, "चुप्पी" आपको अपना प्रभाव दिखा कर रहेगी। समूचीपुरुष प्रजाति या यूँ कहें की 'नर' जाति में उस "चुप्पी" का इलाज ढूंढ पाने की क्षमता और साहस दोनों ही नहीं हैं। 

एक दुःख में भरी महिला अगर "चुप्पी" साध ले तो उसका पार पाना किसी के वश में नहीं होता। उस पर अगर वो आपसे जुड़ी भी रहे और चुप्पी भी  साध ले, तो वो एक अजीब से शून्यता भरे व्यवहार के साथ आपसे मिलेगी। आपको समझ में तो आएगा की कुछ गड़बड़ है, पर आप कभी भी  कुछ कर नहीं पाएंगे। आपकी लाखों कोशिशें केवल व्यर्थ ही जाएंगी। 

इसलिए यकीन मानिये, अगर आपके जीवन में कोई महिला है तो उसे यथासंभव "चुप्पी" ज़ोन में जाने से रोकिये। ऐसी कोई बात, आचरण या व्यवहार मत कीजिये की जो आपकी प्रिय है वो "चुप्पी" साध ले। 

क्यूंकि अगर ऐसा हुआ तो रोज़ फटने वाले एटम बम से ज्यादा भयावह स्थिति आपके जीवन में उत्पन्न हो जाएगी और आपका दिल और दिमाग़ इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। 


#मोहनगोड़बोले"साहिल"

24/8/23

Sunday, June 13, 2021

 


मोहन गोड़बोले "साहिल "


साहिल यानि किनारा 


पता है किनारे की सबसे खास बात क्या होती है, वो नदी का साथ कभी नहीं छोड़ता, 


नदी चाहे शांत समंदर का ठहराव लिए हो, या उफ़न कर सब बहा ले जाने को आतुर हो, साहिल हमेशा उसे संभाले रखता है। 


नदी जब बरसात में अपने पूरे शबाब पर होती है महीने दो महीने, या पूरे साल दूसरे छोर से सटकर बहती हो,  या बीच में एक पतली सी रेखा जैसी बहती हो धीमे धीमे लेकिन निरंतर... 


वो पतली रेखा ही उस साहिल की जीवन रेखा होती है, उसका एक सिरा चाहे अछूता ही क्यूँ न रहे उम्र भर पर उसे सुकून होता है की वो नदी का हिस्सा है। 


कुछ नदियाँ कभी कभार विलुप्त हो जाती हैं, तब किनारा उसकी याद में पत्थर बनकर भी टिका रहता है, वो उस नदी के अस्तित्व को मिटने नहीं देता। 


ऐसी ही किसी 'शीतल' नदी का किनारा हूँ मैं शायद... 

जो नदी का रुख़ मुड़ने के बावजूद , उसके बहने के पुराने रास्ते को सहेजे हुवे दिन-ब-दिन 

बस पत्थर होता जा रहा है, 


नदी के गुज़रने का संगीत अपने दिल में समाये हुवे, समाधी में मग्न है, 


किनारा सदा से नदी का था... 

'साहिल' सदा नदी का ही रहेगा.. 


बरसाती या मौसमी नदी कभी उसे,  अपनी जीवन रेखा से दूर न ले जा सकेगी.. 



पार्श्व में सज्जाद अली गा रहे हैं 


"साहिल" पे खड़े हो तुम्हे क्या ग़म चले जाना 

मैं डूब रहा हूँ अभी डूबा तो नहीं हूँ.... 


Sunday, November 19, 2017

मैंने ज़िदगी की ख़ुशियाँ तुम्हारी आँखों में देख़ने की जुर्रत की

मुझे माफ़ कर सको तो करो


मैंने हर साँस तुम्हारी साँसों के साथ लेने की कोशिश की

मुझे माफ़ कर सको तो करो

मुझे अपने दिल के ज़ख्मों पर तुम्हारी छुअन की ज़रूरत थी

मुझे माफ़ कर सको तो करो

मैं के रिश्ते में बेईमान रह गया
मुझे माफ़ कर सको तो करो

मेरी सारी बद्तमीज़ियों के लिए
मुझे माफ़ कर सको तो करो

मैं अपने वचन पर टिक न पाया
मुझे माफ़ कर सको तो करो

मैं के माफ़ी के क़ाबिल भी नहीं मगर फिर भी
मुझे माफ़ कर सको तो करो

तड़पना, जलना और आहें भरना मेरा मुक़द्दर है,
तुम्हारी बांहों में,
 मैं ये सब भूल गया था,
मुझे माफ़ कर सको तो करो

मुझे माफ़ कर सको तो करो...

Wednesday, September 6, 2017

अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद, तेरी यादों से मुख़्तलिफ़ रहना


अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद, 
तेरी यादों से मुख़्तलिफ़ रहना, 

क्यूंकि जब भी एहसासों की हदें लाँघकर 
तेरी यादों की जानिब बेसाख़्ता बढ़ता जाता हूँ,
कदम दर कदम गहराती जाती हैं,
हर उस लम्हे की परछाइयां,
जो हमने बिताएं हैं, एक दूसरे के दिल की 
देहलीज़  पर बैठकर,

 यूँ भी कई बार तुमसे
 ख्वाबों में मिलने की कोशिश में,
 यादों के पिटारे को ठोकर मारकर,
 बेवजह गिराया है , दिल की जमीं पर मैंने,
 जाने क्या बात है कि वो जगह अब भी नम है,
 जहाँ गिरी हैं तेरी यादें,

वो सारे मौसम जो हमारे साथ गुजरे हैं 
इन गुज़िश्ता सालों में,
पलट-पलट के लौट आते हैं,
कभी हवा, कभी खुश्बू ,कभी बारिश,
तो कभी तितली बनकर,
फिर उसके बाद आता है, एक तन्हाई का काला बादल
और छा जाता है उस "साहिल" पर,
जहाँ एहसासों की रेत पर,
तेरी यादों के मौसम धूप सेंक रहे होते हैं,

अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद, 
तेरी यादों से मुख़्तलिफ़ रहना, 

क्योंकि बेचैन करते हैं मुझे,
ज़ेहन में उठते बेबसी के बवंडर,
जिनमे उड़ जाते हैं मेरे ख्वाबों के हसीं पन्ने,
मेरी चाहत की सारी किताबें,

अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद, 
तेरी यादों से मुख़्तलिफ़ रहना, 

कि अब मैं कैसे समझाऊं जग को
भरम अपने रिश्ते का, 
जो रेशम की डोर में लगी गाँठ के जैसा है,

अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद, 
तेरी यादों से मुख़्तलिफ़ रहना, 

 कि अब दुश्वार सा लगता है, 
तुझसे फासले रखकर, तुझे अपनाना 
तेरा न होकर भी तेरा ही कहलाना 

अब मुझे सीखना पड़ेगा शायद ..............

साहिल- २०-८-१७   
   

Sunday, January 15, 2017

मैं तुम्हारा गुनहगार नहीं हूँ .....


मैं तुम्हारा गुनहगार नहीं हूँ .....

मैं ख़ुद का गुनहगार हूँ,
तुमने शायद सबकुछ मुझे सौंपा होगा,
अपनी वेदना, पीड़ा, दुख, संयम सब,

मुझमें तुमने शायद उन जख्मों का इलाज भी ढूंढा होगा,
जो बेवजह ज़िंदगी ने तुम्हारी झोली में डाले थे,

तुम्हें शायद मेरे सूकूत पर
मुझसे से भी ज्यादा यक़ीं था,

पर मैं तो पुरुष हूँ न,
मेरे बस में कहाँ कि मैं
स्त्रीमन की पवित्रता को समझ पाता,

उसकी निश्छल सहृदयता को समझ पाता,

शायद तुम्हें लगा कि मैं एक लोभी की तरह
 तुम्हारा वरण करना चाहता हूँ,
तुमने वही समझा...शायद!

पर ऐसा नहीं था सच कहूं तो,
कुछ पुरुष सच्चे होते हैं,
कुछ पुरुष सच्चे भी होते हैं,

मैं उन दोनों श्रेणियों के बीच अटका सा रहा,
तुम उन दोनों श्रेणियों के समपार से आगे न जा सकीं।

क्योंकि आखिर में मैं पुरूष जो ठहरा !!!
साहिल २५/९/१६

Friday, July 29, 2016

तुम जो हसती हो.......

तुम जो हसती हो तो हवाओं को 
तितलियों के पर मिलते हैं

तुम्हारी खुश्बू से ग़ुलों के
बदन महकते हैं

तुम जो नज़र भर के देख लो
तो बहारें अँगड़ाईयाँ ले लेती हैं

तुम्हारी आहट से मौसमों के
तेवर बदलते हैं

तुम ज़िंदगी, तुम बंदगी, तुम ही इबादत हो,
तुम्हारे वस्ल के पल ख़ुसूसियत से मिलते हैं

ख़ुदा करे ये ज़िंदगी तुम पर इतनी मेहरबान हो जाए
के इस ज़मी से फ़लक तक तुम्हारा एहतराम हो जाए

मैंने माना की मेरा हासिल तेरा ये हिज्र सही
बस एक पल तेरे होठों की सरहद पर,
मेरे भी नाम का कोई मक़ाम हो जाए

साहिल

Tuesday, March 22, 2016

कभी यूँ ही तुमसे मिलता हूँ Series- भाग ३

"संदली के जंगल "  से आगे  .  . . . . . 

हल्की हल्की कुछ बूंदें , सूरज की नज़र बचाकर 
सदाबहार के पत्तों की ओट से,
मेरे हाथ पर आकर मुस्कुराने लगीं थीं ,
उनका असली रंग जो उन्हें मिल गया था,
मेरे हाथों में लगी स्याही का रंग, 

वो स्याही जो तुम्हारे गीत लिखते वक़्त 
रह गई थी मेरी उँगलियों पर , और 
जिसके चेहरे पर तुम्हारे नाम की 
महक आज भी ज़िंदा थी 

और जो वादी में बिखरी हुई 
तुहारी जुल्फों की खुशबू में मिलकर 
मंद मंद हिलोरे ले रही थी 

सारा आलम मानों तुम्हारे ही 
नशे में गुम था ,

मैंने बूंदों से इसका राज़ पूछा 
तो उन्होंने मुस्कुराकर ऊपर 
बादलों की तरफ इशारा कर दिया 
 
अविरत   ,.... .... 
20/11/14