Sunday, December 16, 2012

बन रहे थे जो सबब मुश्किल का, मेरे अपनों की,
बहा दी अस्थियाँ गंगा में, मैंने ऐसे सपनों की 


- साहिल 

Friday, December 7, 2012

तेरे मद भरे नैनों में , जिंदगी की शाम हो जाये
तू जो एक बार छू ले, हर पैमाना जाम हो जाये 

साथिया आज हम पे ,बस इतनी  इनायत कर दे 
तेरे हाथों से ही जीने मरने  का, इंतजाम हो जाये 

कब तलक दौर ऐ जहाँ में ,रुसवाइयां मिलती रहे 
कभी तो इस बेचैन दिल को , आराम हो जाये 

साहिल - 07/12/12 

Tuesday, November 20, 2012

आरज़ू

मुझसे बेहतर तुझे इश्क की, कोई वजह मिले न मिले 
आरज़ू है  मेरे दिल को , तू आजमा के तो देख 


तेरे दिल की हो या मेरे दिल की, कोई सुबह खिले न खिले 
  चन्द लम्हों की मुलाक़ात को तू आ के तो देख 

पिघल जाने दे आज  जज्बातों को मोंम की तरह 
एक बार मुझे सीने से लगा के तो देख
 
तेरी हिकारत तो सदियों से सहता रहा 
एक बार मेरी तरफ मुस्कुरा के तो देख 

न मिल मुझसे मौसम की तरह रंग बदले बदले 
एक बार असल मिजाज़ में तू आके तो देख 

मुझसे बेहतर तुझे इश्क की, कोई वजह मिले न मिले 
आरज़ू है  मेरे दिल को , तू आजमा के तो देख 


मोहन गोडबोले (साहिल)- 21/11/12 

Tuesday, October 30, 2012


"आलम ऐ वक़त ऐ फुर्सत की जानिब से "

कुछ अजीब संगीन  सी हो चली है ज़िन्दगी
वो ही धड़कने वो ही साँसे, वो ही आरज़ू वो हो ख्वाहिशें 
वो ही जुस्तजू वो ही उलझनें ,वो ही कश्मकश  और वो ही सिलसिले 
दिल ही तो है कोई कांच का खिलौना नहीं,
 टूटे बिखरे तो भी जंचता अब  रोना नहीं 
वो ही मुद्दतों का इंतज़ार, बार बार हर बार लगातार 
वो ही कोशिशें वो ही हसरतें ,वो ही दिल के जख्मो पे पड़े जाले 
वो ही बंदिशें वो ही फुरसतें ,वो ही अँधेरे और वो ही उजाले 
वो ही आईने वो ही सूरतें, वो ही चलती फिरती इंसानी मूरतें 
वो ही सुबहें वो ही शामें , वो ही घनघोर बादल मतवाले 
डोर नाज़ुक महीन सी हो चली है ज़िन्दगी ..

वो ही तमन्नाओं का टुटा हुआ सितारा 
वो ही पागल मन बंजारा आवारा,
वो हर किसी की आँखों में, शिकायतों का मौसम 
वो ही थके से क़दमों के सदाएं देते छाले 
वो बेहिसाब फ़िक़रे वो बे हिसाब ताने 
वो भरे भरे से मैक़द और वो ख़ाली ख़ाली प्याले ,
वो बेक़रार सासें  वो ही इंतज़ार उनका 
वो झूठे मूठे शिकवे और वो झूठे मूठे नाले 
कुछ अजीब रंगीन सी हो चली है ज़िन्दगी 


मोहन गोडबोले (साहिल)
31/10/2012

Sunday, July 22, 2012

  याद के झरोखे से निकल के,
 एक आरज़ू तेरी और ले आई है,

कुछ ऐसी कसक दिल में उठी
 के मेरी आँख भर आई है 

क्या तेरी यादों का समाँ, कुछ इतना भीगा सा है
के हर तरफ एक धुंध सी छाई है,

आज बारिश तो न हुई मेरे आंगन में  लेकिन,
 दिन भर से बस घनघोर घटा छाई है 

तेरे जाने से न दिन कम, हुए ना रात ही,
जो कम हुई , तेरे प्यार की परछाई है ,

साहिल: २१/७/१२ 



Saturday, July 7, 2012

आंसुओ  में धुली  ख़ुशी  की तरह ,
रिश्ते  होते  है  शायरी  की  तरह ,

जब  कभी  बादलों  में  घिरता  है ,
चाँद  लगता  है  आदमी  की  तरह ,

किसी  रोज  किसी  दरीचे  से ,
सामने   आओ  रौशनी  की  तरह ,

सब  नजर  का  फरेब  है ,
कोई   होता  नहीं  किसी  की  तरह ,

खुबसूरत ,उदास ,खौफजदा ,
वो  भी  है  बीसवी  सदी  की  तरह ,

Sunday, March 4, 2012

ग़ज़ल


उम्र भर सूखे पत्तों की तरह बिखरे हुए थे हम
मुद्दतों बाद किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए ,

रह रह कर हवा के झोकों ने कर दिया हैरान 
मै समझ नहीं पाया ये बुझाने के लिए थे या जलाने के लिए,

वो टूटे रिश्तों की चिता हो या यादों की गर्माहट ,
दिल के अंगार ही लगते हैं आग जलाने के लिए,

उनकी बस वो एक मुस्कराहट ही काफी है 
दिल के बुझे चराग़ जलाने के लिए 

 उम्र भर सूखे पत्तों की तरह बिखरे हुए थे हम
मुद्दतों बाद किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए ,

मोहन गोडबोले (साहिल) -- ४/३/२०१२ 

Monday, February 20, 2012

रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई 
क़तरा कतरा भीग गया उजली बौछार में,
सुनहरी धूप की गर्माहट से खिल उठा ये मन 
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,

कैसी आज ये घडी आई है की हर तरफ जगमगाहट है .
धुंधली  शाम के आगोश में जुगनुओं की आहट है.
दूर उडती धुंध में ये गोधुली साकार हुई 
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,
रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई ......


रात के ओटलों पे चलती  चाँद की अठखेलियाँ,
टिमटिमाती झिलमिलाती सितारों की झालरें 
तेरे दीदार के इस्तकबाल में,मौसिकी यूँ  तैयार हुई
ज़िन्दगी जैसे गुलज़ार हुई ,
रोशनी इस कदर मेरे आँगन में हुई ....

मोहन गोडबोले (साहिल) - २०-२-२०१२