मुद्दतों बाद किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए ,
रह रह कर हवा के झोकों ने कर दिया हैरान
मै समझ नहीं पाया ये बुझाने के लिए थे या जलाने के लिए,
वो टूटे रिश्तों की चिता हो या यादों की गर्माहट ,
दिल के अंगार ही लगते हैं आग जलाने के लिए,
उनकी बस वो एक मुस्कराहट ही काफी है
दिल के बुझे चराग़ जलाने के लिए
उम्र भर सूखे पत्तों की तरह बिखरे हुए थे हम
मुद्दतों बाद किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए ,
मोहन गोडबोले (साहिल) -- ४/३/२०१२