"दायरे "में खुश हूँ
समाजी रवायतों और नियमों का
न इल्म है न परवाह मुझे,
मेरी अपनी नियमावली के
"दायरे "में खुश हूँ .......
कौन सच्चा है? क्या झूठा है ?
कौन मुरीद है ? कौन रूठा है ?
ना शिकवों की फ़िक्र ना शिकायतों
की परवाह है मुझे,
खुद को सताने मनाने के
"दायरे "में खुश हूँ
ना इंतज़ार किसी का न कोई मेरा करना,
मैं जैसा हूँ वैसा ठीक हूँ मुझे आता नहीं संवरना,
अपनी ही उलझनों सुलझनोँ के
"दायरे "में खुश हूँ
वो कहते हैं तोड़ दो दायरे, मुक्त हो जाओ
संभावनाओं के आकाश में ऊपर उठो ,
मगर उसकी भी अपनी सीमाएँ हैं, दायरे हैं
वो अपनी परिधि में खुश, और मैं अपने
"दायरे "में खुश हूँ
मोहन गोडबोले 'साहिल'- २१/६/१४
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