कहते हैं अवध की शाम का अंदाज़ है निराला
मगर शबे-मालवा की बात ही कुछ और है.…
हमने देखी हैं हर बड़े शहर की रौनकें
मगर अपने इंदौर की बात ही कुछ और है
दिन कि हसीं शुरुआत के लिए
"पोहे" अगर मिल जाएँ तो फिर बात ही कुछ और हैं
"सर जी","एक्सक्यूज़ मी" "हेलो हाय" तो हर जगह मौजूद हैं
मगर "भिया राओम " की बात ही कुछ और है
" जी हाँ", "हाँ जी ", "यस सर " तो सब कहें
मगर इन्दोरी "हओ" कि बात कि कुछ और हैं
कितने ही बड़े हों, बिकानो और हल्दीराम
अपने शहर कि "सेंव" कि बात ही कुछ और है
जहाँ पूछने पर भी पता नहीं बताते कई लोग
वहाँ घर तक छोड़ आये उस इंदौरी कि बात ही कुछ और है
कितने ही बड़े शायर और फ़नकार हो कहीं
"राहत इंदौरी" कि मगर बात ही कुछ और है
होंगे हर शहर में कुछ खास मोहल्ले
छप्पन और सराफा कि मगर बात ही कुछ और है
पीकर के तो टल्ली हो जाते ही हैं लोग
मगर "माल तेज" हो जाये तो बात ही कुछ और है
मोहन गोडबोले- "साहिल -इंदौरी "
१/१२/२०१३
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