Tuesday, December 6, 2011

पिघल कर चिपक गई है
 मोम की तरह,
कल फिर सारी रात
 जलती रही है तेरी याद....

जूझती, टूटती, बिखरती, 
आखिरी लौ की तरह..
कल फिर सारी रात
जलती रही है तेरी याद...

अनकहे, अनछुए, धुंधले 
सपनों की तरह ..
पलकों पे उलझती 
सुलझती रही है तेरी याद....

तेरे सपनों की 
सुगबुगाहट की आस में..
सारी रात करवटें 
बदलती रही है तेरी याद....

रात भर दरीचों से ताकती 
तेरे इंतजार में,बिखर कर
सुबह की ओस हो गई है तेरी याद...
 
पिघल कर चिपक गई है
 मोम की तरह..................................,
 
-- मोहन गोडबोले(साहिल)  २५/११/२०११ 

2 comments:

  1. रात भर दरीचों से ताकती
    तेरे इंतजार में,बिखर कर
    सुबह की ओस हो गई है तेरी याद
    किसी कि यादों को मोम बनाकर बहुत ही खूबसूरती से सजाया है आफ्नै अपनी रचना में ...बहुत खूब

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  2. Shukriya shukriya... ye mera 84va prayas tha

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