Thursday, December 30, 2010

बूँद: नीर की बूँद

 बूँद: नीर की बूँद
मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,

मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,

बूँद जो पत्तों के पहलु पर आकर थमे,
सूर्य की खामोश नजरें  हौले से जिस पर जमे ,
शीत ऋतू के आगमन की गूंज बनना  चाहता हूँ,
मैं पत्तों पर ओस की एक बूँद बनना  चाहता हूँ ||१||
मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,.......(२)

बूँद जो सागर के ह्रदय से उठे और अम्बर में जा मिले,
बूँद जो बादलों में घुलकर उनके ही संग संग चले ,
फिर बरस कर बादलों से जो नदी में जा मिले ,
धवल धारा की सतह पर धुंद बनना चाहता हूँ ||2||
मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,.......(२)

बूँद जिसके बरसने से खिल जाये धरती का आँगन,
और जड़ो तक भीगने से लहराए फूलों की चादर ,
वसुंधरा के प्राणियों में जो जीवन की प्यास जगाये,
उस अमृत रस वर्षा की एक बूँद बनना चाहता हूँ,||३|
मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,.......(२)

बूँद जो मन का हाल बताए, जो ह्रदय की चाल बताए,
मानव का अंतरतम जो निचोड़े, जो दिमाग को दिल से जोड़े,
करुण ह्रदय के क्रंदन की वो गूंज बनना चाहता हूँ ,
मैं गंगा सी पवित्र अश्रु की एक बूँद बनना चाहता हूँ ||४|

मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,.......
मैं धरा पर नीर की एक बूँद बनना चाहता हूँ,.......
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                                                                   मोहन गोडबोले -" साहिल": ०६-०२-२००५ 

3 comments:

  1. बहुत ही अच्छी भावनाएं....
    कॄपया अपने प्रोफ़ाइल में अपना परिचय लिखें....और वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें...

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  2. Please read "Khamosh" in the second line of first stanza. mohan

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  3. इसे edit करके ठीक कर दिजिये..........

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