हमारी ख़ामोशी को हमारी कमजोरी न समझ
हमारी सहिष्णुता को हमारी मजबूरी न समझ
जिस दिन शमशीर उठा लेंगे
कश्मीर तो क्या तुझसे लाहौर भी छुड़ा लेंगे
मत भूल ऐ पडोसी मुल्क कि,
सियासत में मुनासिब रवादारी
बखूबी हम समझते हैं
हो लबों पर भले ही ख़ामोशी,
पर हाथ हम भी ट्रिगर पर रखते हैं
साहिल- ( २/५/१३ )
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